प्रस्तावना
इस प्रस्तुत शोध कार्य का प्रथम मूल उद्देश्य आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप को स्थापित करना है. इस आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप के प्रभाव से जर्मन भूगोलवेत्ता अल्फ्रेड वेगनर (१९१२) के महाद्वीपों व महासागरों की उत्पति के सिद्धांत को किस प्रकार गलत साबित किया जाता है तथा फिर १९६० के दशक में अस्तित्व में आये प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में प्लेटों की हलचल की वास्तविक व्याख्या किस रूप में सामने आती है इन सभी को विस्तार से स्पष्ट किया गया है. तब फिर पृथ्वी के सम्पूर्ण भूगोल व जीवों-वनस्पतिओं की उत्पत्ति पर क्या प्रभाव पडेगा इसको आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप के अनुसार इसमें विस्तार से स्पष्ट किया गया है. ऐसे आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप के विचार का हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों, उपग्रहों, फिर सूर्य स्वयं फिर अन्य तारो फिर हमारी गैलेक्सी फिर अन्य गैलेक्सीओ और फिर इस ब्रह्माण्ड से लेकर समस्त उच्च से उच्चत्तर ब्रह्मांडो पर क्या प्रभाव पडेगा यानि सम्पूर्ण खगोल विज्ञान व खगोल भोतिकी में क्या परिवर्तन इसका विशाल व्यापक स्तर पर वर्णन किया गया है. जहाँ महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत, महासागरों व महाद्वीपों की उतपत्ति एवं प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत पृथ्वी, कुछ गेलीलियन चंद्रमाओं, शुक्र, मंगल, ब्रहस्पति व शनि के कुछ चंद्रमाओं आदि तक ही जाकर सीमट जाता है और इसके चरमोत्कर्ष अर्थ गलत दिशा में बढ़ने लगते है. वही आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप केवल कुछ ग्रहों व उपग्रहों तक ही प्रभावशाली नहीं रहता बल्कि यह हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों, उपग्रहों, तारों, ब्लेक होलों, गेलेक्सिओं व इस ब्रह्माण्ड से लेकर उच्चत्तर ब्रह्मांडो तक सफलतापूर्वक व्यापक ढंग से लागू होता है. हमने महाद्वीपों व महासागरों की इस नई व्याख्या के आधार पर एक आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप को स्थापित करने का प्रयास किया है और आदर्श भोगोलिक प्रतिरूप के सम्पूर्ण अर्थ की बड़े विशाल लार्ज स्केल या बड़े पैमाने पर व्याख्या प्रस्तुत की है जो महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के द्वारा असंभव है. अल्फ्रेड वेगनर के इस महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के अनुसार महाद्वीप एक समय आपस में पेंजिया जैसे सूपर महाद्वीप के रूप में परस्पर जुड़े हुए थे फिर ये अलग होकर सरकते सरकते आज वर्तमान सात महाद्वीपों में आ गये. इस पेंजिया के पूर्व क्या रहा था तथा बाद में पेंजिया ऐसे महाद्वीपों के रूप में परिवर्तित होकर वर्तमान तक आने के पीछे कौनसी गुरुत्वीय बलों की या अन्य क्रिया-प्रतिक्रियाए चली
No comments:
Post a Comment