Oscillation

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Wednesday, August 10, 2016

दिन रात कैसे होते है और पृथ्वी कैसे घूर्णन नहीं करती

पृथ्वी की उत्पत्ति हमारे दोलनीय ब्रम्हांड के मॉडल के अनुसार हुई. जब ब्रम्हांड दो अलग अलग कन्फोकल ऑब्लेट आकृतियों के बीच दोलन करता है तो एक ब्लैक होल बनता जो स्वयं भी इसी प्रकार ब्रम्हांड की ही तरह दो अलग अलग कन्फोकल ऑब्लेट आकृतियों के बीच दोलन करता है. ये दोलनीय ब्रम्हांड द्वारा उत्पन्न ब्लैक होल हमेशा के लिए ब्लैक होल ही नहीं रहते और समय के साथ इनके द्रव्यमान, त्रिज्या, गुरुत्वाकर्षण आदि में कमी होती है. एक ब्लैक होल ब्रम्हांड में पृथ्वी की सबसे प्रथम अवस्था होती है फिर ये ब्लैक होल अवस्था से विभिन्न भीमकाय तारों में रूपांतरित या परिवर्तित होते जाते है. क्योकि समय के साथ साथ इनके द्रव्यमान, त्रिज्या, गुरुत्वकर्षण आदि में कमी होती जाती है. अतः एक ब्लैक होल पहले एक तारे में, फिर विभिन्न दूसरे तारों की अवस्था से गुजरता हुआ एक गैस दानव ग्रह में परिवर्तित हो जाता है. विभिन्न गैस दानव ग्रहों से यह एक बृहस्पति, फिर शनि, फिर शनि से यूरेनस, यूरेनस से नेप्चून, नेप्चून से सुपर अर्थ, सुपर अर्थ से ये फिर पृथ्वी बन जाता है. इस तरह से एक से दूसरी अवस्थाओं में परिवर्तित होता ये ब्लैक होल दो भिन्न कन्फोकल ऑब्लेट आकृतियों से जिन तारो और ग्रहों में रूपांतरित होता है फिर वे भी ठीक ऐसे ही दोलनमय स्वभाव के होते है. दो अलग अलग कन्फोकल ऑब्लेट आकृतियों के बीच दोलन का मतलब यह हे कि ये आकाशीय पिंड फिर घूर्णन नहीं करते और ये एक गीले कपडे की तरह मरोड़े व निचोड़े जाते है. यानि ये दोलनीय ढंग में दोनों उत्तरी व दक्षिणी गोलार्धों में परस्पर विपरीत दिशाओं में दक्षिणावर्त और वामावर्त तरीके से मरोड़े व निचोड़े जाते है. लेकिन इसमें सभी आकाशीय पिंडो व ब्रम्हांड के लिए दोलन का समय एक ही नहीं होता और सभी के दोलन की दर अलग होती है. ब्रम्हांड तेज गति से दोलन करता है किन्तु ब्लैक होल ब्रम्हांड की तुलना में धीमी गति से दोलन करता है. ब्लैक होल की तुलना में तारे धीमी गति से दोलन करते है और तारो की तुलना में ग्रह और भी धीमी गति से दोलन करते है अंततः चन्द्रमाओ में ये दोलन लगभग खत्म ही हो जाता है. लेकिन दोलन के इस विराट क्रम में घूर्णन कैसे अस्तित्व में आता है और मानव मस्तिष्क इन दोलन और घूर्णन के सम्बन्ध को कैसे समझ सकता है. प्रत्येक आकाशीय पिंड और ब्रम्हांड का दोलन इस तरह से आनुपातिक ढंग में है कि हमें ये सभी घूर्णन और परिक्रमण करते दिख रहे है लेकिन इनके पीछे की वास्तविकता ही अलग तरह से दिखती है.
इस तरह से ब्रम्हांड और सभी आकाशीय पिंडो में दोलनीय प्रवृत्ति एक आनुपातिक तरीके से स्थापित है जिससे घूर्णन का अस्तित्व आता है. पृथ्वी घूर्णन को समझने में हमें दोलन के इस विशाल आनुपातिक अंतर को बारीकी से ध्यान देना पड़ेगा और कैसे ये एक घूर्णन के रूप में दिखाई देने लगता है इसके लिए पृथ्वी के सम्पूर्ण ब्रम्हांड इतिहास को ध्यान में रखना पड़ेगा. साथ ही हमने वीडियो द्वारा वेरिएबल ओब्लेटनेस्स और डिफरेंशियल रोटेशन दोनों को एकीकृत करके जो ट्विस्टिंग और स्क्वीजिंग का नया दोलनीय आईडिया बताया है उसमे दोलन की दर को नियंत्रित और आनुपातिक ढंग में विचार करना जरुरी है. क्योकि सभी आकाशीय पिंडो का ये दोलन गुण आनुपातिक हो कर अंततः घूर्णन रूप कैसे ले लेता है इसका एक क्रमिक विकास होता है. इस लिए घूर्णन के अस्तित्व में आने के इस विशाल क्रमबद्ध परिवर्तन को एक दोलनीय अर्थ में समझने के लिए विराट व्यापक रूप में देखने की जरुरत है.
पृथ्वी तो तब भी घूर्णन नहीं करती यदि भूगोलवेत्ता सुपर कांटिनेंट का अस्तित्व बताते है. जब सभी महाद्वीप पृथ्वी के घूर्णन की दिशा में ही नहीं चलते तो फिर पृथ्वी घूर्णन कैसे करती है. मैँ भी यही कहता हुँ कि पृथ्वी घूर्णन नहीं करती और सुपर कांटिनेंट के खंडित होने से भी ऐसा स्पष्ट दिखता है कि पृथ्वी फिर घूर्णन नहीं करती तो आप तय कीजिये कोनसा ब्रम्हांड व्यापी अर्थ में अधिक उपयुक्त है. जब सुपर कांटिनेंट ऐसे खंडित हो कर महाद्वीप चलने लगते है तो बताइए फिर पृथ्वी कैसे घूर्णन करती है? दिन रात तो फिर आपके अनुसार कैसे होते है? मेरे दोलनीय मॉडल के अनुसार भी पृथ्वी फटाफट दोलन थोड़ी करती है? पृथ्वी भी सुपर कांटिनेंट के करोडो वर्षो में खंडित होने की बहुत धीमी प्रक्रिया के ठीक सामान ही एक दोलन में बहुत लम्बा समय लेती है. दिन रात तो फिर सुपर कांटिनेंट के खंडित होने की इस इतनी लम्बी प्रक्रिया के अनुसार भी तो नहीं होते है न? वे कहते है पृथ्वी पर सुपर कांटिनेंट के खंडित होने की प्रक्रिया तो करोडो वर्षो में पूरी होती है तो मेरा भी जवाब है मेरा दोलनीय पृथ्वी का मॉडल ये थोड़ी न कहता है कि पृथ्वी फटाफट फटाफट दोलन करती है? सुपर कांटिनेंट के धीरे धीरे खण्डित होने की ही तरह पृथ्वी भी बहुत धीरे धीरे दोलन करती है फटाफट दोलन नहीं करती. अरे पृथ्वी इतनी तेज या फ़ास्ट गति से दोलन थोड़ी न करती है जिससे कि दिन रात नहीं हो पाएंगे. जैसे सुपर कांटिनेंट ब्रेकिंग को आप करोडो वर्षो में पूरा होना बता रहे है कुछ वैसे ही पृथ्वी का एक दोलन काल अंतराल होता है. पृथ्वी के घूर्णन की परिवर्तनशीलता को आप लार्ज टाइम स्केल पर कैसे देख रहे है पुरे सिस्टम का इतने लार्ज अंतराल में नजारा केसा होगा ये सोचिये फिर साइक्लिक या दोलनीय बात पर आइये. सुपर कांटिनेंट साइकिल की तरह लार्ज स्केल पर घूर्णन साइक्लिक परिवर्तन को कैसे देखते है? इस पुरे नज़ारे को ब्रॉड माइंड से विशाल पटल पर विचार कीजिये फिर देखिये पृथ्वी घूर्णन कर रही है या दोलन कर रही है. पृथ्वी का इसके जन्म से अब तक का घूर्णन इतिहास लार्ज ब्रम्हांड स्केल पर देखिये थोड़े से समय अंतराल में नहीं विचार करे. फिर सोचिये रात-दिन कैसे हो रहे है. केवल आज का दिन और आज की रात से आप ये नहीं कह सकते कि पृथ्वी तो घूम ही रही है न. केवल सूर्योदय और सूर्यास्त का मतलब ये नहीं कि पृथ्वी घूर्णन कर रही है इसके बेक में क्या चल रहा है इसके अदृश्य जगत में क्या चल रहा है. केवल दिन-रात के होने से आप इस परिणाम पर नहीं पहुँच सकते की पृथ्वी घूर्णन कर रही है. महाद्वीप आपके अनुसार इस तरह अस्त व्यस्त ढंग से बिना किसी सर्वमान्य निर्धारित नियम से गति करते है तो फिर आपके अनुसार पृथ्वी घूर्णन कैसे करती है. यदि आप कहते है कि पृथ्वी घूर्णन करती है तो सभी महाद्वीप भी तो एक ही दिशा में पृथ्वी के घूर्णन की दिशा में गति करने चाहिए न. हवा, पानी और ठोस सभी एक ही पृथ्वी की घूर्णन की दिशा में ही चलने चाहिए किन्तु आपके भौगोलिक तर्क के अनुसार ऐसा नहीं है और ये तो ब्रम्हांड द्वारा निर्धरित एक सर्वमान्य नियम से आपके अनुसार नहीं चल रहे है. अरे भाई घूर्णन तो फिर आपके अनुसार भी नहीं कर रही है जनाब. आप तर्क देते है कि महाद्वीप तो करोडो वर्षो में जा कर ऐसे स्थान बदलते है. मेरा पृथ्वी को मरोड़ने व निचोड़ने का दोलनीय मॉडल भी यही कहता है कि एक दोलन चक्र पूरा होने में बहुत लम्बा समय लगता है फटाफट दोलन नहीं होते है. एक महाद्वीप इधर तो दूसरा उधर जा रहा है फिर भी आप कह रहे है कि पृथ्वी घूर्णन कर रही है. ये क्या बात हुई? बिना किसी सर्वमान्य नियम के. परस्पर विरोधी उलटी दिशा में यदि महाद्वीप गति करेंगे तो पहले आप ही बताइए आपके अनुसार पृथ्वी घूर्णन कैसे करेगी. पहले तो आपके अनुसार पृथ्वी घूर्णन कैसे करती है रात-दिन कैसे होते है? यदि आपके अनुसार इस तरह से महाद्वीप गति करेंगे तो पृथ्वी घूर्णन ही नहीं करेगी बल्कि केवल लड़खड़ाती ही रहेगी. एक महाद्वीप इधर तो दूसरा उधर बिना पृथ्वी के घूर्णन के साथ तालमेल बनाए हुए? दोलन इतने तेज गति से जल्दी जल्दी फटाफट थोड़ी न होते है बहुत धीरे धीरे होते है एक चक्र पूरा होने में लम्बा समय लगता है. आप ही पहले पहले पृथ्वी के घूर्णन के नियम को तोड़ रहे है न. पहले पहले एक ही महाद्वीप सुपर कांटिनेंट ही क्यों था अनेक क्यों नहीं? कन्वेक्शन ने सुपर कांटिनेंट को इस तरह अस्त व्यस्त ढंग से खंडित क्यों किया किसी ब्रम्हांड व्यापी नियम के पालन करते हुए खंडित क्यों नहीं किया?
जब दूसरे ग्रहों में डिफरेंशियल रोटेशन होता है तो पृथ्वी में ये क्यों नहीं होता है? डिफरेंशियल रोटेशन सूर्य में होता है, बृहस्पति में होता है, शनि में होता है, यूरेनस में होता है, नेप्चून में होता है, केपलर और दूसरे मिशंस द्वारा खोजे गए ग्रहों में भी होता देखा गया है फिर ये ही गुण पृथ्वी में कैसे और क्यों नहीं होता है? होना भी चाहिए और होता है डिफरेंशियल रोटेशन पृथ्वी में भी होता है लेकिन बड़े ध्यान से समझना पड़ेगा. अल्फ्रेड वेगेनर और फ्रांसिस बेकन के विचारों को व्यापक ब्रम्हांड नजरिये से देखना होगा. पृथ्वी सिस्टम के भौगोलिक नियमों को विशाल व्यापक रूप से संबंधित करना होगा. अब दुनिया में अधिकतर वैज्ञानिक कनेक्टेड यूनिवर्स की बात पर विचार करने लगे है. थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग की बात करने लगे है. न्यूटन और आइंस्टीन भी ऐसा ही सोचते थे. ब्रम्हांड में कॉमन बातों को देखने लगे है. सभी इस बात पर सहमत है सारा ब्रम्हांड एक ही नियम के द्वारा संचालित होता है. तो फिर पृथ्वी का भूगोल भी इसी नियम से संचालित होगा. प्लेट टेक्टोनिक्स भी, कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्ट्स भी, ... सम्पूर्ण भूगोल भी.
पृथ्वी कैसे ट्विस्ट होती है कैसे ये घूर्णन नहीं करती और इसका दोलनीय नेचर केसा है यह सम्पूर्ण ब्रम्हांड में समस्त आकाशीय पिंडो के एक दूसरे से तुलना करने से समझ आता है न कि केवल मात्र पृथ्वी से. सभी बातो को एक दूसरे से जोड़ कर एक दूसरे से कनेक्ट करते हुए विचार करेंगे तभी ये समझ में आ पाएगा. इसके लिए हमें अपनी कल्पना शक्ति को विराट रूप देना होगा हमें सभी बातों को व्यापक ब्रम्हांड स्तर पर कनेक्ट करते हुए यह देखना होगा पृथ्वी का वास्तविक घूर्णन नेचर क्या है. भूगोल, खगोल, सजीव-निर्जीव सभी के नेचर को कनेक्ट करके ही हम यह सिद्ध कर सकते है कि पृथ्वी कैसे घूर्णन नहीं करती और फिर इससे दिन-रात की कहानी स्पष्ट हो सकेगी इसके पीछे की वास्तविकता प्रकट हो सकेगी.

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